कभी की थी जो अब वफ़ा कीजिएगा
मुझे पूछ कर आप क्या कीजिएगा
हसरत मोहानी
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अब दिलों में कोई गुंजाइश नहीं मिलती 'हयात'
बस किताबों में लिक्खा हर्फ़-ए-वफ़ा रह जाएगा
हयात लखनवी
तुझ से वफ़ा न की तो किसी से वफ़ा न की
किस तरह इंतिक़ाम लिया अपने आप से
हिमायत अली शाएर
दश्त-ए-वफ़ा में जल के न रह जाएँ अपने दिल
वो धूप है कि रंग हैं काले पड़े हुए
होश तिर्मिज़ी
अब तो कर डालिए वफ़ा उस को
वो जो वादा उधार रहता है
इब्न-ए-मुफ़्ती
बस एक बार ही तोड़ा जहाँ ने अहद-ए-वफ़ा
किसी से हम ने फिर अहद-ए-वफ़ा किया ही नहीं
इब्राहीम अश्क
क्यूँ पशेमाँ हो अगर वअ'दा वफ़ा हो न सका
कहीं वादे भी निभाने के लिए होते हैं
इबरत मछलीशहरी