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वफा शायरी | शाही शायरी

वफा

80 शेर

तिरी वफ़ा में मिली आरज़ू-ए-मौत मुझे
जो मौत मिल गई होती तो कोई बात भी थी

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के

your feet are tender, delicate, harsh are the paths of constancy
on me your vengeance do not wreak, by thus giving me company

ख़ुमार बाराबंकवी




चाही थी दिल ने तुझ से वफ़ा कम बहुत ही कम
शायद इसी लिए है गिला कम बहुत ही कम

महबूब ख़िज़ां




बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता

I sacrifice my heart upon your infidelity
were you faithful it would be a calamity

मीर तक़ी मीर




अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई

नुशूर वाहिदी




क्या मस्लहत-शनास था वो आदमी 'क़तील'
मजबूरियों का जिस ने वफ़ा नाम रख दिया

क़तील शिफ़ाई




मेरे ब'अद वफ़ा का धोका और किसी से मत करना
गाली देगी दुनिया तुझ को सर मेरा झुक जाएगा

क़तील शिफ़ाई