बहुत मुश्किल ज़मानों में भी हम अहल-ए-मोहब्बत
वफ़ा पर इश्क़ की बुनियाद रखना चाहते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ
मिरी ज़मीन पे इक मअरका लहू का भी हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी
मैं उस की क़ैद में हूँ क़ैद से रिहाई में भी
इफ़्तिख़ार आरिफ़
या वफ़ा ही न थी ज़माने में
या मगर दोस्तों ने की ही नहीं
इस्माइल मेरठी
वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत
अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम
जौन एलिया
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद
जिगर मुरादाबादी
वो कहते हैं हर चोट पर मुस्कुराओ
वफ़ा याद रक्खो सितम भूल जाओ
कलीम आजिज़