सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया
वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
ऐ मैं सौ जान से इस तर्ज़-ए-तकल्लुम के निसार
फिर तो फ़रमाइए क्या आप ने इरशाद किया
इस का रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बर्बाद
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया
इतना मानूस हूँ फ़ितरत से कली जब चटकी
झुक के मैं ने ये कहा मुझ से कुछ इरशाद किया
मेरी हर साँस है इस बात की शाहिद ऐ मौत
मैं ने हर लुत्फ़ के मौक़े पे तुझे याद किया
मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया
कुछ नहीं इस के सिवा 'जोश' हरीफ़ों का कलाम
वस्ल ने शाद किया हिज्र ने नाशाद किया
ग़ज़ल
सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया
जोश मलीहाबादी