अब नहीं लौट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला
हो गईं कुछ इधर ऐसी बातें
रुक गया रोज़ का आने वाला
अक्स आँखों से चुरा लेता है
एक तस्वीर बनाने वाला
लाख होंटों पे हँसी हो लेकिन
ख़ुश नहीं ख़ुश नज़र आने वाला
ज़द में तूफ़ान की आया कैसे
प्यास साहिल पे बुझाने वाला
रह गया है मिरा साया बन कर
मुझ को ख़ातिर में न लाने वाला
बन गया हम-सफ़र आख़िर 'नज़्मी'
रास्ता काट के जाने वाला
ग़ज़ल
अब नहीं लौट के आने वाला
अख़्तर नज़्मी