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इश्क शायरी | शाही शायरी

इश्क

422 शेर

मोहब्बत का उन को यक़ीं आ चला है
हक़ीक़त बने जा रहे हैं फ़साने

महेश चंद्र नक़्श




इब्तिदा वो थी कि जीने के लिए मरता था मैं
इंतिहा ये है कि मरने की भी हसरत न रही

At the start, life prolonged,was my deep desire
now at the end, even for death, I do not aspire

माहिर-उल क़ादरी




शम-ए-शब-ताब एक रात जली
जलने वाले तमाम उम्र जले

महमूद अयाज़




मैं आ गया हूँ वहाँ तक तिरी तमन्ना में
जहाँ से कोई भी इम्कान-ए-वापसी न रहे

महमूद गज़नी




इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे
दिल के अंगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे

मख़दूम मुहिउद्दीन




तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में न हो
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो

मंज़र लखनवी




हम को किस के ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
किस ने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही

मसरूर अनवर