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ग़म-ए-दिल हम-रही करे न करे | शाही शायरी
gham-e-dil ham-rahi kare na kare

ग़ज़ल

ग़म-ए-दिल हम-रही करे न करे

महमूद अयाज़

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ग़म-ए-दिल हम-रही करे न करे
अंजुम-ए-सुब्ह हम तो डूब चले

ख़ामुशी किस के नक़्श-ए-पा पे मिटी
रास्ते किस को ढूँडने निकले

चाँद तारे भी शब-गज़ीदा हैं
सर-ए-मिज़्गाँ कोई चराग़ जले

पास थी मंज़िल-ए-मुराद मगर
हम ग़म-ए-रफ़्तगाँ के साथ रहे

शम-ए-शब-ताब एक रात जली
जलने वाले तमाम उम्र जले