ग़म-ए-दिल हम-रही करे न करे
अंजुम-ए-सुब्ह हम तो डूब चले
ख़ामुशी किस के नक़्श-ए-पा पे मिटी
रास्ते किस को ढूँडने निकले
चाँद तारे भी शब-गज़ीदा हैं
सर-ए-मिज़्गाँ कोई चराग़ जले
पास थी मंज़िल-ए-मुराद मगर
हम ग़म-ए-रफ़्तगाँ के साथ रहे
शम-ए-शब-ताब एक रात जली
जलने वाले तमाम उम्र जले
ग़ज़ल
ग़म-ए-दिल हम-रही करे न करे
महमूद अयाज़