इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी
इस क़दर उलझन में पहले ज़िंदगी देखी न थी
ये तमाशा भी अजब है उन के उठ जाने के बाद
मैं ने दिन में इस से पहले तीरगी देखी न थी
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी
आप से आँखें मिली थीं फिर न जाने क्या हुआ
लोग कहते हैं कि ऐसी बे-ख़ुदी देखी न थी
मुझ को रुख़्सत कर रहे हैं वो अजब अंदाज़ से
आँख में आँसू लबों पर ये हँसी देखी न थी
किस क़दर ख़ुश हूँ मैं 'नासिर' उन को पा लेने के बाद
ऐसा लगता है कभी ऐसी ख़ुशी देखी न थी
ग़ज़ल
इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी
हकीम नासिर