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इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी | शाही शायरी
ishq kar ke dekh li jo bebasi dekhi na thi

ग़ज़ल

इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी

हकीम नासिर

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इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी
इस क़दर उलझन में पहले ज़िंदगी देखी न थी

ये तमाशा भी अजब है उन के उठ जाने के बाद
मैं ने दिन में इस से पहले तीरगी देखी न थी

आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी

आप से आँखें मिली थीं फिर न जाने क्या हुआ
लोग कहते हैं कि ऐसी बे-ख़ुदी देखी न थी

मुझ को रुख़्सत कर रहे हैं वो अजब अंदाज़ से
आँख में आँसू लबों पर ये हँसी देखी न थी

किस क़दर ख़ुश हूँ मैं 'नासिर' उन को पा लेने के बाद
ऐसा लगता है कभी ऐसी ख़ुशी देखी न थी