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प्रसिद्ध शायरी | शाही शायरी

प्रसिद्ध

248 शेर

'अनीस' दम का भरोसा नहीं ठहर जाओ
चराग़ ले के कहाँ सामने हवा के चले

मीर अनीस




लगा रहा हूँ मज़ामीन-ऐ-नौ के फिर अम्बार
ख़बर करो मेरे ख़िरमन के ख़ोशा-चीनों को

मीर अनीस




सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं
गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं

मीर हसन




आख़िर गिल अपनी सर्फ़-ए-दर-ए-मय-कदा हुई
पहुँची वहीं पे ख़ाक जहाँ का ख़मीर था

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार




अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया

मीर तक़ी मीर




हम हुए तुम हुए कि 'मीर' हुए
उस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए

whether me or you, or miir it may be
are prisoners of her tresses for eternity

मीर तक़ी मीर




इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है

love is a real burden, Miir, it is a heavy stone
how can it be lifted by a weak person alone?

मीर तक़ी मीर