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प्रसिद्ध शायरी | शाही शायरी

प्रसिद्ध

248 शेर

मुझे आ गया यक़ीं सा कि यही है मेरी मंज़िल
सर-ए-राह जब किसी ने मुझे दफ़अतन पुकारा

I then came to believe it was, my goal, my destiny
When someone in my path called out to me repeatedly

शकील बदायुनी




तर्क-ए-मय ही समझ इसे नासेह
इतनी पी है कि पी नहीं जाती

शकील बदायुनी




उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद
वक़्त कितना क़ीमती है आज कल

her mention, her yearning her memory
O how precious time now seems to me

शकील बदायुनी




यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

Every evening was, by hope, sustained
This evening's desperation makes me weep

शकील बदायुनी




शायद इसी का नाम मोहब्बत है 'शेफ़्ता'
इक आग सी है सीने के अंदर लगी हुई

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता




ऐ 'ज़ौक़' देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा
छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़र लगी हुई

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो
ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़