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प्रसिद्ध शायरी | शाही शायरी

प्रसिद्ध

248 शेर

मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं

मीर तक़ी मीर




'मीर' अमदन भी कोई मरता है
जान है तो जहान है प्यारे

मीर तक़ी मीर




ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़




क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो

मियाँ दाद ख़ां सय्याह




तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता

in such a manner are you close to me
when no one else at all there ever be

मोमिन ख़ाँ मोमिन




उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे

Momin all your life in idol worship you did spend
How can you be a Muslim say now towards the end?

मोमिन ख़ाँ मोमिन




वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो

the love that 'tween us used to be, you may, may not recall
those promises of constancy, you may, may not recall

मोमिन ख़ाँ मोमिन