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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

वक़्त-ए-पीरी दोस्तों की बे-रुख़ी का क्या गिला
बच के चलते हैं सभी गिरती हुई दीवार से

in old age friends forsake, why should one complain at all
nobody treads in the shadow of a crumbling wall

फ़िराक़ गोरखपुरी




दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं

I do nor fear injury from my enemies
what frightens me is my friend's fidelities

हफ़ीज़ बनारसी




अगर तू इत्तिफ़ाक़न मिल भी जाए
तिरी फ़ुर्क़त के सदमे कम न होंगे

even if perchance we meet
my ache for you will not deplete

हफ़ीज़ होशियारपुरी




दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त
दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से

friendship is commonplace my dear
but friends are hard to find I fea

हफ़ीज़ होशियारपुरी




मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
तिरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे

those that love you will not shrink
But I will be gone I think

हफ़ीज़ होशियारपुरी




ज़माने भर के ग़म या इक तिरा ग़म
ये ग़म होगा तो कितने ग़म न होंगे

your sorrow or a world of pain
if this be there none will remain

हफ़ीज़ होशियारपुरी




दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं

may my friends too receive this wealth of pain
I cannot envisage my solitary gain

हफ़ीज़ जालंधरी