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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

हर शब शब-ए-बरात है हर रोज़ रोज़-ए-ईद
सोता हूँ हाथ गर्दन-ए-मीना में डाल के

each night is a night of love, each day a day divine
I sleep with my arms entwined around a flask of wine

हैदर अली आतिश




काट कर पर मुतमइन सय्याद बे-परवा न हो
रूह बुलबुल की इरादा रखती है परवाज़ का

having shorn its wings O hunter, be not complacent
the soul of the nightingale to soar is now intent

हैदर अली आतिश




कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवा
हसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया

save visions of her, nothing comes to mind
the longing for her sight surely turned me blind

हैदर अली आतिश




मसनद-ए-शाही की हसरत हम फ़क़ीरों को नहीं
फ़र्श है घर में हमारे चादर-ए-महताब का

we mendicants do not long for royal quilted thrones
our homes have floors

हैदर अली आतिश




आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं

the time of his death, man cannot foresee
uncertain of the morrow yet, plans for a century

हैरत इलाहाबादी




न तो कुछ फ़िक्र में हासिल है न तदबीर में है
वही होता है जो इंसान की तक़दीर में है

there is naught from worrying, nor from planning gained
for everything that happens is by fate ordained

हैरत इलाहाबादी




हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक़्त आया

I need a favour from my friends so now
the time has come for them to disavow

हरी चंद अख़्तर