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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

नासेह को बुलाओ मिरा ईमान सँभाले
फिर देख लिया उस ने शरारत की नज़र से

call for the priest, my faith is all askance
she has cast upon me a mischief laden glance

हफ़ीज़ जालंधरी




वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया
जिसे बुत बनाया ख़ुदा हो गया

I was constant but she eschewed fidelity
the one I idolized, alas, claimed divinity

हफ़ीज़ जालंधरी




क़ैद में इतना ज़माना हो गया
अब क़फ़स भी आशियाना हो गया

having been in prison all these years
to me this cage a haven now appears

हफ़ीज़ जौनपुरी




आए भी लोग बैठे भी उठ भी खड़े हुए
मैं जा ही ढूँडता तिरी महफ़िल में रह गया

in your presence others were seated with charm and grace
whilst I remained unheeded, for me there was no place

हैदर अली आतिश




बे-गिनती बोसे लेंगे रुख़-ए-दिल-पसंद के
आशिक़ तिरे पढ़े नहीं इल्म-ए-हिसाब को

we shall kiss your beautiful face without counting
your lover is unversed in the science of accounting

हैदर अली आतिश




बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए
दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है

you may excavate the temple, the mosque you may explode
do not break the heart of man, for this is God's abode

हैदर अली आतिश




हमेशा मैं ने गरेबाँ को चाक चाक किया
तमाम उम्र रफ़ूगर रहे रफ़ू करते

Tween kaabaa and the loved one's face is deep affinity
Corpses, toward's mecca for a cause are faced to be

हैदर अली आतिश