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मुनीर नियाज़ी शायरी | शाही शायरी

मुनीर नियाज़ी शेर

116 शेर

ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक
मैं ख़्वाब में तो हूँ लेकिन ख़याल भी है मुझे

मुनीर नियाज़ी




ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
तू आ के जा भी चुका है मैं इंतिज़ार में हूँ

मुनीर नियाज़ी




ये अजनबी सी मंज़िलें और रफ़्तगाँ की याद
तन्हाइयों का ज़हर है और हम हैं दोस्तो

मुनीर नियाज़ी




वो खड़ा है एक बाब-ए-इल्म की दहलीज़ पर
मैं ये कहता हूँ उसे इस ख़ौफ़ में दाख़िल न हो

मुनीर नियाज़ी




वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया
रेशमी मल्बूस की ख़ुश्बू से जादू कर गया

मुनीर नियाज़ी




वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन
वो दिन था मेरी उम्र का सब से ख़राब दिन

मुनीर नियाज़ी




वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में 'मुनीर'
आज कल होता गया और दिन हवा होते गए

मुनीर नियाज़ी




वहम ये तुझ को अजब है ऐ जमाल-ए-कम-नुमा
जैसे सब कुछ हो मगर तू दीद के क़ाबिल न हो

मुनीर नियाज़ी




सुन बस्तियों का हाल जो हद से गुज़र गईं
उन उम्मतों का ज़िक्र जो रस्तों में मर गईं

मुनीर नियाज़ी