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मुनीर नियाज़ी शायरी | शाही शायरी

मुनीर नियाज़ी शेर

116 शेर

बड़ी मुश्किल से ये जाना कि हिज्र-ए-यार में रहना
बहुत मुश्किल है पर आख़िर में आसानी बहुत है

मुनीर नियाज़ी




अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
चाँद ने पानी में देखा और पागल हो गया

मुनीर नियाज़ी




अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो
कभी कभी जब वक़्त मिले तो अपने घर भी जाते रहना

मुनीर नियाज़ी




ऐसा सफ़र है जिस की कोई इंतिहा नहीं
ऐसा मकाँ है जिस में कोई हम-नफ़स नहीं

मुनीर नियाज़ी




अच्छी मिसाल बनतीं ज़ाहिर अगर वो होतीं
इन नेकियों को हम तो दरिया में डाल आए

मुनीर नियाज़ी




अब किसी में अगले वक़्तों की वफ़ा बाक़ी नहीं
सब क़बीले एक हैं अब सारी ज़ातें एक सी

मुनीर नियाज़ी




अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या

मुनीर नियाज़ी




आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है

मुनीर नियाज़ी




आदत ही बना ली है तुम ने तो 'मुनीर' अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना

मुनीर नियाज़ी