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मुनीर नियाज़ी शायरी | शाही शायरी

मुनीर नियाज़ी शेर

116 शेर

नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं

मुनीर नियाज़ी




पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को
हुस्न वालों की सादगी न गई

मुनीर नियाज़ी




क़बा-ए-ज़र्द पहन कर वो बज़्म में आया
गुल-ए-हिना को हथेली में थाम कर बैठा

मुनीर नियाज़ी




रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी
गूँज उट्ठे बाम-ओ-दर मेरी सदा के सामने

मुनीर नियाज़ी




रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर
इन रोज़ ओ शब में मुझ को ये फ़ुर्सत नहीं मिली

मुनीर नियाज़ी




रोया था कौन कौन मुझे कुछ ख़बर नहीं
मैं उस घड़ी वतन से कई मील दूर था

मुनीर नियाज़ी




शायद कोई देखने वाला हो जाए हैरान
कमरे की दीवारों पर कोई नक़्श बना कर देख

मुनीर नियाज़ी




शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं

मुनीर नियाज़ी




शहर की गलियों में गहरी तीरगी गिर्यां रही
रात बादल इस तरह आए कि मैं तो डर गया

मुनीर नियाज़ी