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मुनीर नियाज़ी शायरी | शाही शायरी

मुनीर नियाज़ी शेर

116 शेर

है 'मुनीर' तेरी निगाह में
कोई बात गहरे मलाल की

मुनीर नियाज़ी




है 'मुनीर' हैरत-ए-मुस्तक़िल
मैं खड़ा हूँ ऐसे मक़ाम पर

मुनीर नियाज़ी




घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के

मुनीर नियाज़ी




ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं

मुनीर नियाज़ी




गली के बाहर तमाम मंज़र बदल गए थे
जो साया-ए-कू-ए-यार उतरा तो मैं ने देखा

मुनीर नियाज़ी




ग़ैरों से मिल के ही सही बे-बाक तो हुआ
बारे वो शोख़ पहले से चालाक तो हुआ

मुनीर नियाज़ी




ग़ैर से नफ़रत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई
जितने हम थे हम ने ख़ुद को उस से आधा कर लिया

मुनीर नियाज़ी




ग़ैर से नफ़अत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई
जितने हम थे हम ने ख़ुद को उस से आधा कर लिया

मुनीर नियाज़ी




एक वारिस हमेशा होता है
तख़्त ख़ाली रहा नहीं करता

मुनीर नियाज़ी