अश्क-ए-रवाँ की नहर है और हम हैं दोस्तो
उस बेवफ़ा का शहर है और हम हैं दोस्तो
ये अजनबी सी मंज़िलें और रफ़्तगाँ की याद
तन्हाइयों का ज़हर है और हम हैं दोस्तो
लाई है अब उड़ा के गए मौसमों की बास
बरखा की रुत का क़हर है और हम हैं दोस्तो
फिरते हैं मिस्ल-ए-मौज-ए-हुआ शहर शहर में
आवारगी की लहर है और हम हैं दोस्तो
शाम-ए-अलम ढली तो चली दर्द की हवा
रातों की पिछ्ला पहर है और हम हैं दोस्तो
आँखों में उड़ रही है लुटी महफ़िलों की धूल
इबरत-सरा-ए-दहर है और हम हैं दोस्तो
ग़ज़ल
अश्क-ए-रवाँ की नहर है और हम हैं दोस्तो
मुनीर नियाज़ी