EN اردو
मुनीर नियाज़ी शायरी | शाही शायरी

मुनीर नियाज़ी शेर

116 शेर

शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं

मुनीर नियाज़ी




शहर की गलियों में गहरी तीरगी गिर्यां रही
रात बादल इस तरह आए कि मैं तो डर गया

मुनीर नियाज़ी




शहर में वो मो'तबर मेरी गवाही से हुआ
फिर मुझे इस शहर में ना-मो'तबर उस ने किया

मुनीर नियाज़ी




सुब्ह-ए-काज़िब की हवा में दर्द था कितना 'मुनीर'
रेल की सीटी बजी तो दिल लहू से भर गया

मुनीर नियाज़ी




सुन बस्तियों का हाल जो हद से गुज़र गईं
उन उम्मतों का ज़िक्र जो रस्तों में मर गईं

मुनीर नियाज़ी




तन्हा उजाड़ बुर्जों में फिरता है तू 'मुनीर'
वो ज़र-फ़िशानियाँ तिरे रुख़ की किधर गईं

मुनीर नियाज़ी




उस हुस्न का शेवा है जब इश्क़ नज़र आए
पर्दे में चले जाना शरमाए हुए रहना

मुनीर नियाज़ी




तू भी जैसे बदल सा जाता है
अक्स-ए-दीवार के बदलते ही

मुनीर नियाज़ी




तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो
मैं डूब भी जाता तो कहीं और उभरता

मुनीर नियाज़ी