ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं
नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं
हर तरफ़ दीवार-ओ-दर और उन में आँखों के हुजूम
कह सके जो दिल की हालत वो लब-ए-गोया नहीं
जुर्म आदम ने किया और नस्ल-ए-आदम को सज़ा
काटता हूँ ज़िंदगी भर मैं ने जो बोया नहीं
जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी 'मुनीर'
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं
ग़ज़ल
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
मुनीर नियाज़ी