मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
ये सोचता हुआ गिरजा बुला रहा है मुझे
साक़ी फ़ारुक़ी
नए चराग़ जला याद के ख़राबे में
वतन में रात सही रौशनी मनाया कर
साक़ी फ़ारुक़ी
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
मिरी यादों में इक भूला हुआ चेहरा भी रहता है
साक़ी फ़ारुक़ी
दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
इस ख़राबे में अब आबाद नहीं है कोई
सरफ़राज़ ख़ालिद
जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
ये याद रहे हम को बहुत याद करोगे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
मैं सोचता हूँ मगर याद कुछ नहीं आता
कि इख़्तिताम कहाँ ख़्वाब के सफ़र का हुआ
शहरयार
यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ
दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है
शहज़ाद अहमद