वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
मिरी यादों में इक भूला हुआ चेहरा भी रहता है
जब उस की सर्द-मेहरी देखता हूँ बुझने लगता हूँ
मुझे अपनी अदाकारी का अंदाज़ा भी रहता है
मैं उन से भी मिला करता हूँ जिन से दिल नहीं मिलता
मगर ख़ुद से बिछड़ जाने का अंदेशा भी रहता है
जो मुमकिन हो तो पुर-असरार दुनियाओं में दाख़िल हो
कि हर दीवार में इक चोर दरवाज़ा भी रहता है
बस अपनी बेबसी की सातवीं मंज़िल में ज़िंदा हूँ
यहाँ पर आग भी रहती है और नौहा भी रहता है
ग़ज़ल
वही आँखों में और आँखों से पोशीदा भी रहता है
साक़ी फ़ारुक़ी