याद भी तेरी मिट गई दिल से
और क्या रह गया है होने को
अबरार अहमद
तमाम रात वो पहलू को गर्म करता रहा
किसी की याद का नश्शा शराब जैसा था
अबरार आज़मी
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अभी सहीफ़ा-ए-जाँ पर रक़म भी क्या होगा
अभी तो याद भी बे-साख़्ता नहीं आई
अदा जाफ़री
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याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था
अदीम हाशमी
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यादों ने उसे तोड़ दिया मार के पत्थर
आईने की ख़ंदक़ में जो परछाईं पड़ी थी
आदिल मंसूरी
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ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
आदिल मंसूरी
ख़बर देती है याद करता है कोई
जो बाँधा है हिचकी ने तार आते आते
अफ़सर इलाहाबादी