ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती 
न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता
दाग़ देहलवी
इश्क़ ने जिस दिल पे क़ब्ज़ा कर लिया 
फिर कहाँ उस में नशात ओ ग़म रहे
दत्तात्रिया कैफ़ी
इस शहर में तो कुछ नहीं रुस्वाई के सिवा 
ऐ 'दिल' ये इश्क़ ले के किधर आ गया तुझे
दिल अय्यूबी
ये राह-ए-इश्क़ है आख़िर कोई मज़ाक़ नहीं 
सऊबतों से जो घबरा गए हों घर जाएँ
दिल अय्यूबी
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                                ज़िंदगी जब अज़ाब होती है 
आशिक़ी कामयाब होती है
दुष्यंत कुमार
शोरिश-ए-इश्क़ में है हुस्न बराबर का शरीक 
सोच कर जुर्म-ए-तमन्ना की सज़ा दो हम को
एहसान दानिश
क़ब्रों में नहीं हम को किताबों में उतारो 
हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरें हैं
एजाज तवक्कल

