सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है
ग़म किसे कहते हैं ख़ुशी क्या है
फ़रहत शहज़ाद
यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा
इसी तरह से कटी ज़िंदगी तो क्या होगा
फ़ारिग़ बुख़ारी
ग़म-ए-इश्क़ ही ने काटी ग़म-ए-इश्क़ की मुसीबत
इसी मौज ने डुबोया इसी मौज ने उभारा
फ़ारूक़ बाँसपारी
सफ़ेद-पोशी-ए-दिल का भरम भी रखना है
तिरी ख़ुशी के लिए तेरा ग़म भी रखना है
फ़ाज़िल जमीली
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़ मेरे अश्क-ए-ग़म की तर्जुमानी है
कोई कहता है मोती है कोई कहता है पानी है
फ़िगार उन्नावी
ग़म-ओ-अलम से जो ताबीर की ख़ुशी मैं ने
बहुत क़रीब से देखी है ज़िंदगी मैं ने
फ़िगार उन्नावी
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी