ग़म की दुनिया रहे आबाद 'शकील'
मुफ़लिसी में कोई जागीर तो है
शकील बदायुनी
मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं
जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं
शकील बदायुनी
हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए
न दर्द-ओ-ग़म का भरोसा रहा न दुनिया का
वहीद क़ुरैशी