ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की
अब्दुल हमीद अदम
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लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उस ने
हौसले भी 'अदम' दिए होते
अब्दुल हमीद अदम
ग़म से निस्बत है जिन्हें ज़ब्त-ए-अलम करते हैं
अश्क को ज़ीनत-ए-दामाँ नहीं होने देते
अबरार किरतपुरी
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ग़म से हम सूख जब हुए लकड़ी
दोस्ती का निहाल डाल काट
आबरू शाह मुबारक
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ग़म-ए-हबीब नहीं कुछ ग़म-ए-जहाँ से अलग
ये अहल-ए-दर्द ने क्या मसअले उठाए हैं
अबु मोहम्मद सहर
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तकमील-ए-आरज़ू से भी होता है ग़म कभी
ऐसी दुआ न माँग जिसे बद-दुआ कहें
अबु मोहम्मद सहर
ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई
इब्तिदा रंज की कहाँ से हुई
अदा जाफ़री
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