ऐश ही ऐश है न सब ग़म है
ज़िंदगी इक हसीन संगम है
अली जव्वाद ज़ैदी
हम अहल-ए-दिल ने मेयार-ए-मोहब्बत भी बदल डाले
जो ग़म हर फ़र्द का ग़म है उसी को ग़म समझते हैं
अली जव्वाद ज़ैदी
मिरी ज़िंदगी का हासिल तिरे ग़म की पासदारी
तिरे ग़म की आबरू है मुझे हर ख़ुशी से प्यारी
आमिर उस्मानी
सच है उम्र भर किस का कौन साथ देता है
ग़म भी हो गया रुख़्सत दिल को छोड़ कर तन्हा
अनवर शऊर
ग़म-ए-जहान ओ ग़म-ए-यार दो किनारे हैं
उधर जो डूबे वो अक्सर इधर निकल आए
अरशद अब्दुल हमीद
न आया ग़म भी मोहब्बत में साज़गार मुझे
वो ख़ुद तड़प गए देखा जो बे-क़रार मुझे
असद भोपाली
फ़िक्र-ए-जहान दर्द-ए-मोहब्बत फ़िराक़-ए-यार
क्या कहिए कितने ग़म हैं मिरी ज़िंदगी के साथ
असर अकबराबादी