ग़म से बिखरा न पाएमाल हुआ
मैं तो ग़म से ही बे-मिसाल हुआ
हसन नईम
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शिकवा-ए-ग़म तिरे हुज़ूर किया
हम ने बे-शक बड़ा क़ुसूर किया
हसरत मोहानी
रहें ग़म की शरर-अंगेज़ियाँ या-रब क़यामत तक
'हया' ग़म से न मिलती गर कभी फ़ुर्सत तो अच्छा था
हया लखनवी
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फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस न कर
हासिल-ए-ग़म को ख़ुदा-रा ग़म-ए-हासिल न बना
हिमायत अली शाएर
दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे
अब तो ये दर्द की सूरत ही दवा हो जैसे
होश तिर्मिज़ी
आशोब-ए-इज़्तिराब में खटका जो है तो ये
ग़म तेरा मिल न जाए ग़म-ए-रोज़गार में
इक़बाल सुहैल
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हज़ार तरह के थे रंज पिछले मौसम में
पर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था
जमाल एहसानी
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