हाए वो राज़-ए-ग़म कि जो अब तक
तेरे दिल में मिरी निगाह में है
जिगर मुरादाबादी
मसर्रत ज़िंदगी का दूसरा नाम
मसर्रत की तमन्ना मुस्तक़िल ग़म
जिगर मुरादाबादी
मिरी रूदाद-ए-ग़म वो सुन रहे हैं
तबस्सुम सा लबों पर आ रहा है
जिगर मुरादाबादी
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ग़म दे गया नशात-ए-शनासाई ले गया
वो अपने साथ अपनी मसीहाई ले गया
जुनैद हज़ीं लारी
ग़म मुझे ना-तवान रखता है
इश्क़ भी इक निशान रखता है
जुरअत क़लंदर बख़्श
बहुत दुश्वार समझाना है ग़म का
समझ लेने में दुश्वारी नहीं है
कलीम आजिज़
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वो बात ज़रा सी जिसे कहते हैं ग़म-ए-दिल
समझाने में इक उम्र गुज़र जाए है प्यारे
कलीम आजिज़