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गम शायरी | शाही शायरी

गम

108 शेर

हाए वो राज़-ए-ग़म कि जो अब तक
तेरे दिल में मिरी निगाह में है

जिगर मुरादाबादी




मसर्रत ज़िंदगी का दूसरा नाम
मसर्रत की तमन्ना मुस्तक़िल ग़म

जिगर मुरादाबादी




मिरी रूदाद-ए-ग़म वो सुन रहे हैं
तबस्सुम सा लबों पर आ रहा है

जिगर मुरादाबादी




ग़म दे गया नशात-ए-शनासाई ले गया
वो अपने साथ अपनी मसीहाई ले गया

जुनैद हज़ीं लारी




ग़म मुझे ना-तवान रखता है
इश्क़ भी इक निशान रखता है

जुरअत क़लंदर बख़्श




बहुत दुश्वार समझाना है ग़म का
समझ लेने में दुश्वारी नहीं है

कलीम आजिज़




वो बात ज़रा सी जिसे कहते हैं ग़म-ए-दिल
समझाने में इक उम्र गुज़र जाए है प्यारे

कलीम आजिज़