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कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का | शाही शायरी
koi na chahne wala tha husn-e-ruswa ka

ग़ज़ल

कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का

वहीद क़ुरैशी

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कोई न चाहने वाला था हुस्न-ए-रुस्वा का
दयार-ए-ग़म में रहा दिल को पास दुनिया का

फ़रेब-ए-सुब्ह-ए-बहाराँ भी है क़ुबूल हमें
कोई नक़ीब तो आया पयाम-ए-फ़र्दा का

हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए
न दर्द-ओ-ग़म का भरोसा रहा न दुनिया का

तिरी वफ़ा ने दिया दर्स-ए-आगही हम को
तिरे जुनूँ ने किया काम चश्म-ए-बीना का

उलझ के रह गई हर तान से नवा-ए-सरोश
तिलिस्म टूट गया हुस्न-ए-नग़्मा-पैरा का

शब-ए-फ़िराक़ में तारे गिने तो नींद आई
ये हाल हो गया आख़िर तुम्हारे शैदा का

'वहीद' गरमी-ए-अंदेशा ने ग़ज़ब ढाया
सुलग रहा है अभी हाथ ख़ामा-फ़र्सा का