वो बात ज़रा सी जिसे कहते हैं ग़म-ए-दिल
समझाने में इक उम्र गुज़र जाए है प्यारे
कलीम आजिज़
एक दिल है कि उजड़ जाए तो बस्ता ही नहीं
एक बुत-ख़ाना है उजड़े तो हरम होता है
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
हंगामा-ए-हयात से जाँ-बर न हो सका
ये दिल अजीब दिल है कि पत्थर न हो सका
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
अक़्ल ओ दिल अपनी अपनी कहें जब 'ख़ुमार'
अक़्ल की सुनिए दिल का कहा कीजिए
ख़ुमार बाराबंकवी
मुझे तो उन की इबादत पे रहम आता है
जबीं के साथ जो सज्दे में दिल झुका न सके
ख़ुमार बाराबंकवी
रौशनी के लिए दिल जलाना पड़ा
कैसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बअ'द
ख़ुमार बाराबंकवी
किसी ख़याल किसी ख़्वाब के लिए 'ख़ुर्शीद'
दिया दरीचे में रक्खा था दिल जलाया था
ख़ुर्शीद रब्बानी