तुझे कुछ इश्क़ ओ उल्फ़त के सिवा भी याद है ऐ दिल
सुनाए जा रहा है एक ही अफ़्साना बरसों से
अब्दुल मजीद सालिक
अँधेरी रात को मैं रोज़-ए-इश्क़ समझा था
चराग़ तू ने जलाया तो दिल बुझा मेरा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
मैं ठहरता गया रफ़्ता रफ़्ता
और ये दिल अपनी रवानी में रहा
अबरार अहमद
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याद भी तेरी मिट गई दिल से
और क्या रह गया है होने को
अबरार अहमद
दिल के वीराने में घूमे तो भटक जाओगे
रौनक़-ए-कूचा-ओ-बाज़ार से आगे न बढ़ो
अदा जाफ़री
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मुझे गुम-शुदा दिल का ग़म है तो ये है
कि इस में भरी थी मोहब्बत किसी की
अफ़सर इलाहाबादी
किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भी
चलो वो चश्म नहीं कम से कम शराब तो हो
आफ़ताब हुसैन