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दिल शायरी | शाही शायरी

दिल

292 शेर

दिल भी ऐ 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था
आँसुओं में कहीं गिरा होगा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'




दिल भी तेरे ही ढंग सीखा है
आन में कुछ है आन में कुछ है

ख़्वाजा मीर 'दर्द'




गली से तिरी दिल को ले तो चला हूँ
मैं पहुँचूँगा जब तक ये आता रहेगा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'




मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े
मिरी याद तुझ को दिलाता रहेगा

ख़्वाजा मीर 'दर्द'




मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए
कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से

ख़्वाजा मीर 'दर्द'




क़ासिद नहीं ये काम तिरा अपनी राह ले
उस का पयाम दिल के सिवा कौन ला सके

ख़्वाजा मीर 'दर्द'




साक़ी मिरे भी दिल की तरफ़ टुक निगाह कर
लब-तिश्ना तेरी बज़्म में ये जाम रह गया

ख़्वाजा मीर 'दर्द'