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हंगामा-ए-हयात से जाँ-बर न हो सका | शाही शायरी
hangama-e-hayat se jaan-bar na ho saka

ग़ज़ल

हंगामा-ए-हयात से जाँ-बर न हो सका

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

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हंगामा-ए-हयात से जाँ-बर न हो सका
ये दिल अजीब दिल है कि पत्थर न हो सका

मेरा लहू भी पी के न दुनिया जवाँ हुई
क़ीमत मिरे जुनूँ की मिरा सर न हो सका

तेरी गली से छुट के न जा-ए-अमाँ मिली
अब के तो मेरा घर भी मिरा घर न हो सका

तेरे न हो सके तो किसी के न हो सके
ये कारोबार-ए-शौक़ मुकर्रर न हो सका

यूँ जी बहल गया है तिरी याद से मगर
तेरा ख़याल तेरे बराबर न हो सका

गुज़री जो शब तो बुझ गए अपने चराग़ भी
आई सहर तो फिर कोई रहबर न हो सका