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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता

the veil slips from her visage at such a gentle pace
as though the sun emerges from a cloud's embrace

अमीर मीनाई




शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता

I haven't slept since parting eve, O Angels, I request
I'll settle your accounts at leisure for now let me rest

अमीर मीनाई




उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ

The one that I desire, this heart cannot displace
The one who is unattainable I seek to embrace

अमीर मीनाई




वस्ल में ख़ाली हुई ग़ैर से महफ़िल तो क्या
शर्म भी जाए तो मैं जानूँ कि तन्हाई हुई

so what if all my rivals from the gathering have gone
when her coyness too departs will we be then alone

अमीर मीनाई




यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले
आज क्यूँ दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी

my love beside me, solitude, tell them to play a part
why do my desires cower hidden in my heart

अमीर मीनाई




हर क़दम पे नाकामी हर क़दम पे महरूमी
ग़ालिबन कोई दुश्मन दोस्तों में शामिल है

It was as if amidst my friends there was an enemy
A failure and deprived at every step did I remain

अमीर क़ज़लबाश




मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ उठ रहे हैं तूफ़ाँ क्यूँ
क्या किसी सफ़ीने को आरज़ू-ए-साहिल है

Why are the waves so agitated, why do storms unfold?
Does a ship amidst the seas, seek the shores again?

अमीर क़ज़लबाश