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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए

i am feasting from thine eyes, pray let this aspect be
lower not your eyes my love, or else this night may flee

अनवर मिर्ज़ापुरी




मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए
मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल न जाए

my tears too this does contain,this wine may start to boil
be careful for my goblet burns with rare intensity

अनवर मिर्ज़ापुरी




मुझे फूँकने से पहले मिरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत मिरे साथ जल न जाए

please remove my heart before i am consigned to flames
As it belongs to someone else it should not burn with me

अनवर मिर्ज़ापुरी




जितनी वो मिरे हाल पे करते हैं जफ़ाएँ
आता है मुझे उन की मोहब्बत का यक़ीं और

More the cruelty from her that I receive
more in her affection for me do I believe

अर्श मलसियानी




ख़ुश्क बातों में कहाँ है शैख़ कैफ़-ए-ज़िंदगी
वो तो पी कर ही मिलेगा जो मज़ा पीने में है

o priest where is the pleasure in this world when dry and sere
tis only when one drinks will then the joy truly appea

अर्श मलसियानी




ग़ैरों को क्या पड़ी है कि रुस्वा करें मुझे
इन साज़िशों में हाथ किसी आश्ना का है

what is it to strangers to spread this calumny
the conspiracy is the work of someone close to me

असअ'द बदायुनी




जो सज़ा दीजे है बजा मुझ को
तुझ से करनी न थी वफ़ा मुझ को

whatever punishment you mete, will be surely meet,
i should not have loved you so, my freedom is forfeit

असर लखनवी