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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

कुछ देर फ़िक्र आलम-ए-बाला की छोड़ दो
इस अंजुमन का राज़ इसी अंजुमन में है

thoughts of paradise for a while do leave aside
the secrets of this life do in this world reside

असर लखनवी




ये सोचते ही रहे और बहार ख़त्म हुई
कहाँ चमन में नशेमन बने कहाँ न बने

i kept contemplating, spring came and went away
where in the garden should I make my nest today

असर लखनवी




ख़ुदा की देन है जिस को नसीब हो जाए
हर एक दिल को ग़म-ए-जावेदाँ नहीं मिलता

this is a gift from God, the blessed are bestowed
not on every heart is this eternal ache endowed

असर सहबाई




चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस से
अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए

I go laughing playing with waves of adversity
If life were to be easy, unbearable it would be

असग़र गोंडवी




इक अदा इक हिजाब इक शोख़ी
नीची नज़रों में क्या नहीं होता

all, shyness, mischief and coquetry
in her lowered glance, are there to see

असग़र गोंडवी




नियाज़-ए-इश्क़ को समझा है क्या ऐ वाइज़-ए-नादाँ
हज़ारों बन गए काबे जबीं मैं ने जहाँ रख दी

o foolish priest the offering of love you do not know
a thousand mosques did appear wherever I did bow

असग़र गोंडवी




ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा
रुख़ पर तिरी ज़ुल्फ़ों को परेशाँ नहीं देखा

the priest has seen my piety, he hasn't seen your grace
he has not seen your tresses strewn across your face

असग़र गोंडवी