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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
तिरी दास्ताँ कोई और थी मिरा वाक़िआ कोई और है

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सलीम कौसर




चमक जुगनू की बर्क़-ए-बे-अमाँ मालूम होती है
क़फ़स में रह के क़द्र-ए-आशियाँ मालूम होती है

the glow of fireflies appears as lightning heaven sent
the value of freedom is felt, during imprisonment

सीमाब अकबराबादी




मंज़िल मिली मुराद मिली मुद्दआ मिला
सब कुछ मुझे मिला जो तिरा नक़्श-ए-पा मिला

destination and desire and my ends attained
i got everything when your footprints I obtained

सीमाब अकबराबादी




मंज़िल मिली मुराद मिली मुद्दआ मिला
सब कुछ मुझे मिला जो तिरा नक़्श-ए-पा मिला

destination and desire and my ends attained
i got everything when your footprints I obtained

सीमाब अकबराबादी




उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

a long life, four days in all, I did negotiate
two were spent in hope and two were spent in wait

सीमाब अकबराबादी




उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में

a long life, four days in all, I did negotiate
two were spent in hope and two were spent in wait

सीमाब अकबराबादी




इज़हार-ए-मुद्दआ का इरादा था आज कुछ
तेवर तुम्हारे देख के ख़ामोश हो गया

thoughI had intended my feelings to convey
seeing your disposition, I did not dare to say

शाद अज़ीमाबादी