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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

आगे मिरे न ग़ैर से गो तुम ने बात की
सरकार की नज़र को तो पहचानता हूँ मैं

though in my presence you did not converse with my foe
dearest, the aspect of your eye, I certainly do know

क़ाएम चाँदपुरी




दुनिया में हम रहे तो कई दिन प इस तरह
दुश्मन के घर में जैसे कोई मेहमाँ रहे

I did stay in this world but twas in such a way
a guest who in the house of his enemy does stay

क़ाएम चाँदपुरी




कब मैं कहता हूँ कि तेरा मैं गुनहगार न था
लेकिन इतनी तो उक़ूबत का सज़ा-वार न था

I have sinned against you, I certainly agree
but was I still deserving of such cruelty

क़ाएम चाँदपुरी




किस बात पर तिरी मैं करूँ ए'तिबार हाए
इक़रार यक तरफ़ है तो इंकार यक तरफ़

what should I believe of what you say to me
on one hand you refuse on the other you agree

क़ाएम चाँदपुरी




ज़िंदगी कहते हैं किस को मौत किस का नाम है
मेहरबानी आप की न-मेहरबानी आप की

what is labeled living, how is death defined
Finding your favour, when you are unkind

रशीद लखनवी




आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले

on seeing her own reflection she is moved to say
ere their time, my paramours shall perish this day

रशीद रामपुरी




आग बरसाए ख़ुशी से कोई सूरज से कहो
मैं कोई मोम नहीं हूँ कि पिघल जाऊँगा

tell the sun to radiate, as brightly as it please
I am not made of wax that will melt away with ease

राशिद हामिदी