अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
हम ने तो दिल जला के सर-ए-आम रख दिया
whoever so desires may now partake of its heat
for I have set my heart afire and left it on the street
क़तील शिफ़ाई
चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते
twas a good thing that my madness was to some avail
else, for my state, what other reason could the world I show?
क़तील शिफ़ाई
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं
I burn up in the flames of unfulfilled desire
like lanterns are, at eventide I am set afire
क़तील शिफ़ाई
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं
whenever my name happens to be linked to thee
I wonder why these people burn with jealousy
क़तील शिफ़ाई
निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न मय-ख़ाना
तो ठुकराए हुए इंसाँ ख़ुदा जाने कहाँ जाते
if on leaving temple,mosque no tavern were be found
what refuge would outcasts find? this only God would know
क़तील शिफ़ाई
शम्अ जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुम-नाम से जल जाते हैं
the fire,that the flame burns in, for all to see
In that very fire I do burn but namelessly
क़तील शिफ़ाई
तुम्हारी बे-रुख़ी ने लाज रख ली बादा-ख़ाने की
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते
your indifference has saved the tavern from ignominy
had I quaffed wine from your eyes, where would the goblets be
क़तील शिफ़ाई