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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

धोके से पिला दी थी उसे भी कोई दो घूँट
पहले से बहुत नर्म है वाइज़ की ज़बाँ अब

through guile we have managed to ply him with
now the priest's tone is much gentler than before

रियाज़ ख़ैराबादी




ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते
क्यूँ बुरे बनते हो तुम नाहक़ किसी के वास्ते

you heap these sorrows onto me, why for other's sake?
For someone else, needlessly this blame why do you take?

रियाज़ ख़ैराबादी




पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
आज इन की गालियों ने बड़ा ही मज़ा दिया

if I find these beauties, I will surely kiss
their lips for their abuses, have given me such bliss

रियाज़ ख़ैराबादी




ये हमीं हैं कि तिरा दर्द छुपा कर दिल में
काम दुनिया के ब-दस्तूर किए जाते हैं

tis only I who with your ache, in my heart replete
silently the tasks assigned, do sincerely complete

सबा अकबराबादी




ये हमीं हैं कि तिरा दर्द छुपा कर दिल में
काम दुनिया के ब-दस्तूर किए जाते हैं

tis only I who with your ache, in my heart replete
silently the tasks assigned, do sincerely complete

सबा अकबराबादी




ख़ाक थी और जिस्म ओ जाँ कहते रहे
चंद ईंटों को मकाँ कहते रहे

it is dust that you for a body espouse
it is few bricks and you call it a house

साग़र मेहदी




ख़ाक थी और जिस्म ओ जाँ कहते रहे
चंद ईंटों को मकाँ कहते रहे

it is dust that you for a body espouse
it is few bricks and you call it a house

साग़र मेहदी