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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की

The news of our affinity has spread to every door
He welcomed me like fragrance which he did adore

परवीन शाकिर




कितने दिनों के प्यासे होंगे यारो सोचो तो
शबनम का क़तरा भी जिन को दरिया लगता है

those people have been parched for many many years
to whom even a drop of dew an ocean appears

क़ैसर-उल जाफ़री




मुसाफ़िर चलते चलते थक गए मंज़िल नहीं मिलती
क़दम के साथ बढ़ता जा रहा हो फ़ासला जैसे

the travelers are weary walking, the goal is still not found
it is as though with every step the distances increase

क़ैसर-उल जाफ़री




अब नज़अ का आलम है मुझ पर तुम अपनी मोहब्बत वापस लो
जब कश्ती डूबने लगती है तो बोझ उतारा करते हैं

my end is now upon me, take back your
for when a ship is sinking, the burden is removed

क़मर जलालवी




पूछो न अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दो
सुनते हैं कि शबनम के क़तरे फूलों को निखारा करते हैं

wipe not the droplets from your face, let beauty's lustre grow
drops of dew when flowers grace, enhance their freshness so

क़मर जलालवी




अब मैं समझा तिरे रुख़्सार पे तिल का मतलब
दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रक्खा है

The import of this spot upon your face I now detect
The treasure of your beauty does this sentinel protect

क़मर मुरादाबादी




ग़म की तौहीन न कर ग़म की शिकायत कर के
दिल रहे या न रहे अज़मत-ए-ग़म रहने दे

belittle not these sorrows, of them do not complain
their glory be preserved, tho heart may not remain

क़मर मुरादाबादी