EN اردو
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं | शाही शायरी
garmi-e-hasrat-e-nakaam se jal jate hain

ग़ज़ल

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं

क़तील शिफ़ाई

;

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं

I burn up in the flames of unfulfilled desire
like lanterns are, at eventide I am set afire

शम्अ' जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं

the fire,that the flame burns in, for all to see
In that very fire I do burn but namelessly

बच निकलते हैं अगर आतिश-ए-सय्याल से हम
शोला-ए-आरिज़-ए-गुलफ़ाम से जल जाते हैं

If from the hunter's fire I manage to escape
I perish in the fire that's in the flower's cape

ख़ुद-नुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं

exhibition's not the norm for those that faithful be
those who wish to perish then do so quietly

रब्त-ए-बाहम पे हमें क्या न कहेंगे दुश्मन
आश्ना जब तिरे पैग़ाम से जल जाते हैं

at our mutual fondness why will enemies not fret
when even friends, at your messages, are all het

जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं

whenever my name happens to be linked to thee
I wonder why these people burn with jealousy