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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

ऐसी क़िस्मत कहाँ कि जाम आता
बू-ए-मय भी इधर नहीं आई

That I would get a goblet it was'nt my fate
now even the whiff of wine does'nt permeate

मुज़्तर ख़ैराबादी




मिरे गुनाह ज़ियादा हैं या तिरी रहमत
करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे

whether my sins are greater of your mercy pray?
My lord take account and tell me this today

मुज़्तर ख़ैराबादी




मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी
बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला

all these worldly troubles and longevity
blessings of the elders is the death of me

मुज़्तर ख़ैराबादी




न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ

I'm not the light of any eye, for me none has a care
no use to anyone am I, dust merely scattered there

मुज़्तर ख़ैराबादी




अल्लाह रे बे-ख़ुदी कि तिरे पास बैठ कर
तेरा ही इंतिज़ार किया है कभी कभी

o lord! There are times when such is my raptured state
even though I am with you, and yet for you I wait

नरेश कुमार शाद




गुनाहों से हमें रग़बत न थी मगर या रब
तिरी निगाह-ए-करम को भी मुँह दिखाना था

O Lord, I was not drawn to sinning all the time
how else could I confront your mercy so sublime

नरेश कुमार शाद




इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो
मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो

disheartened or shortsighted O heart you need not be
this night of sorrow surely will a dawn tomorrow see

नरेश कुमार शाद