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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं

we do deem all those books fit for confiscation
that sons read and think their fathe

अकबर इलाहाबादी




हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
हर साँस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है

each speck does glitter with heavens brilliant glare
each breath proclaims if I, exist God too is there

अकबर इलाहाबादी




हुए इस क़दर मोहज़्ज़ब कभी घर का मुँह न देखा
कटी उम्र होटलों में मरे अस्पताल जा कर

stayed away from home, on being so gentrified
spent ones life in hotels, in hospitals then died

अकबर इलाहाबादी




जब मैं कहता हूँ कि या अल्लाह मेरा हाल देख
हुक्म होता है कि अपना नामा-ए-आमाल देख

when I seek to say, O Lord look at my state
he bids me to the account of my deeds to date

अकबर इलाहाबादी




जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है

laughing, she inquired when, I said "I love you"
is there anything else at all that you know to do

अकबर इलाहाबादी




खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो

neither bow and arrow nor a sword do you require
pubish a newspaper when faced with cannon fire

अकबर इलाहाबादी




मज़हबी बहस मैं ने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं

from sectarian debate refrained
for I was not so scatter-brained

अकबर इलाहाबादी