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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

even tho no longer close we are as used to be
come even if it's purely for sake of formality

अहमद फ़राज़




तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें

neither are not god nor is my love divine, profound
if human both then why does this secrecy surround

अहमद फ़राज़




आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी

those sighs that emerge from this heart so fiiled with pain
do you truly think unanswered these will now remain?

अकबर इलाहाबादी




कोट और पतलून जब पहना तो मिस्टर बन गया
जब कोई तक़रीर की जलसे में लीडर बन गया

donning fancy clothes beame a gentlean avowed
and turned into a leader on speaking to a crowd,

अकबर इलाहाबादी




दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ

I live in this world tho for life I do not vie
I pass through the market but I do not wish to buy

अकबर इलाहाबादी




हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है

barely have I sipped a bit, why should this uproar be
It's not that I've commited theft or daylight robbery

अकबर इलाहाबादी




हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

I do suffer slander, when I merely sigh
she gets away with murder, no mention of it nigh

अकबर इलाहाबादी