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हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है | शाही शायरी
hangama hai kyun barpa thoDi si jo pi li hai

ग़ज़ल

हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है

अकबर इलाहाबादी

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हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है

barely have I sipped a bit, why should this uproar be
It's not that I've commited theft or daylight robbery

ना-तजरबा-कारी से वाइ'ज़ की ये हैं बातें
इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है

the preachers prattle can be to inexerience ascribed
how does he know the joys thereof, has he ever imbibed

उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है बेगाना
मक़्सूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है

that wine is of little use which causes loss of sense
I seek the wine that imbues the heart with love intense

ऐ शौक़ वही मय पी ऐ होश ज़रा सो जा
मेहमान-ए-नज़र इस दम एक बर्क़-ए-तजल्ली है

her heart wishes to torture, mine wants to tolerate
a strange heart she possesses, an odd one I do rate

वाँ दिल में कि सदमे दो याँ जी में कि सब सह लो
उन का भी अजब दिल है मेरा भी अजब जी है

each speck does glitter with heavens brilliant glare
each breath proclaims if I, exist God too is there

हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
हर साँस ये कहती है हम हैं तो ख़ुदा भी है

stains besmirch the sun, it's nature's miracle
Idols call me a heretic, it too must be God's will

सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है

तालीम का शोर ऐसा तहज़ीब का ग़ुल इतना
बरकत जो नहीं होती निय्यत की ख़राबी है

सच कहते हैं शैख़ 'अकबर' है ताअत-ए-हक़ लाज़िम
हाँ तर्क-ए-मय-ओ-शाहिद ये उन की बुज़ुर्गी है