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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

इश्क़ का ज़ौक़-ए-नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है
हुस्न ख़ुद बे-ताब है जल्वा दिखाने के लिए

love is needlessly defamed that for vision it is keen
beauty is impatient too for its splendour to be seen

असरार-उल-हक़ मजाज़




मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई

I had hoped she would unveil at her own behest
and she waits for someone to make a request

असरार-उल-हक़ मजाज़




बंदा-परवर मैं वो बंदा हूँ कि बहर-ए-बंदगी
जिस के आगे सर झुका दूँगा ख़ुदा हो जाएगा

so deep is my devotion, for this piety of mine
if I bow to anyone, he would become divine

आज़ाद अंसारी




दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर
दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग

ignorant of mores when seeking visions bright
if you want the vision, you first need the sight

आज़ाद अंसारी




वो काफ़िर-निगाहें ख़ुदा की पनाह
जिधर फिर गईं फ़ैसला हो गया

those faithless eyes, lord's mercy abide!
wherever they turn, they deem to decide

आज़ाद अंसारी




बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

conversing has never been so diffficult for me
your company now is no more as it used to be

बहादुर शाह ज़फ़र




बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में

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बहादुर शाह ज़फ़र