गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता
daily I converse with her in my fantasy
very seldom is she ever face to face with me
बशीर बद्र
जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
I want to speak only what's true
but courage fails, what can I do
बशीर बद्र
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
she would have had compulsions surely
faithless without cause no one can be
बशीर बद्र
मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले
इक उस को पाने के लिए क्या क्या किया क्या क्या हुआ
went to temples,mosques, and saints,mendicants I saught
to find the one what all I did what on myself have brought
बशीर बद्र
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी
neither are you in your senses nor am I in mine
let us now go to the tavern and talk while we have wine
बशीर बद्र
रात का इंतिज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता
why does one have to wait for night
what doesn't transpire in broad daylight
बशीर बद्र
अर्श तक जाती थी अब लब तक भी आ सकती नहीं
रहम आ जाता है क्यूँ अब मुझ को अपनी आह पर
it cannot even reach my lips, it used to reach the highest skies
I feel compassion at the sorry condition of my sighs
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान